सब के निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।।
सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुःख पावहिं सब लोगा।।
जो मुर्ख मनुष्य सबकी निंदा करते हैं, वे चमगीदड़ होकर जनम लेते हैं। हे तात। अब मानस रोग सुनिये, जिनसे सब लोग दुःख पाया करते हैं।।
18.01.21 11:52 AM - Comment(s)